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Monday, November 15, 2010

खेल में शामिल, खेल से बाहर

इस बीच पटकथाकार ने उसे फिल्म के कुछ अंश सुनाये थे। हनू दा ने समझाया था कि जल्द ही प्रोड्यूसर इस मसले पर बात करने आयेगा। उसके हां होते ही फिल्म की शूटिंग की शेड्यूल तय कर दी जायेगी। और जल्द ही वह दिन आया जब एक थुलथुल बदन का फाइनेंसर अपनी महंगी कार से स्टूडियो पहुंचा था। मुश्किल से पांच मिनट वह स्टूडियो में रुका था। हनू दा ने संक्षेप में कहानी के बारे में बताया था और लेकिन उसने हड़बड़ी में पूछा था कलाकारों आदि के बारे में बताएं कि किसे ले रहे हैं? रीतू का दिल डूबने-उतराने लगा था, प्रोड्यूसर का सवाल सुनकर।
हनू दा ने कहा-'' मैं आपके साथ उस होटल में चल रहा हूं जहां वे ठहरे हैं। रास्ते में इस बारे में बातें होंगी।''
वह जो सुनना चाहती थी। वह हनू दा ने उससे नहीं कहा था। यहां तक कि परिचय तक नहीं कराया था। उसे अपना अनदेखा किया जाना अरुचिकर लग रहा था लेकिन स्टूडियो से निकलते निकलते उसने रीतू से इशारा किया था कि वह भी साथ हो ले। जब कार में प्रोड्यूसर चढ़ा तो हनू दा भी उसमें सवार हो गया और पिछला दरवाज़ा बंद करते हुए उसने प्रोड्यूसर से मुखातिब होकर उसकी ओर इशारा करते हुए कहा था-''ये भी मेरे साथ हैं। हमारे साथ चलें?''
और फिर उत्तर की प्रतीक्षा किये बग़ैर उससे इशारा किया वह कार की अगली सीट पर बैठ जाये।

रीतू जब कार में सवार हो गयी तो उसकी जान में जान आयी। रास्ते भर वे खामोश रहे थे। रीतू को उनकी चुप्पी खलती रही थी। प्रोड्यूसर के सिगरेट का धुंआ वह महसूस कर रही थी। तिरछी निग़ाहों से वह उसे देख-देख लेती थी। जब वे लिफ्ट से ऊपर चढ़े और प्रोड्यूसर के बुक किये कमरे में जाने लगे तो धीरे से हनू दा ने उसके कान में फुसफुसाया था-''बस यह हां कह दे। बात बन जायेगी।''
रीतू को सहसा यह एहसास हो गया कि सब कुछ हनू दा के ही हाथ में नहीं है। प्रोड्यूसर भी उसके हिरोइन बनने की राह में रोड़ा बन सकता है। फिर उसके बाद तो रीतू ने प्रोड्यूसर को भी अपने रूप से रिझा लिया था। हनू दा भी उसके प्रति आभारी था। होटल के उस कमरे में हनू दा थोड़ी देर ही और ठहरा था। उसने प्रोड्यूसर को बताया था -''इसी लड़की को हिरोइन लेने का विचार है। आप इससे बातचीत करें। मुझे निकलना होगी। बच्चे की तबीयत ठीक नहीं है।''
रीतू को यह बुरा नहीं लगा था, क्योंकि उसे लगा था कि प्रोड्यूसर से तो उसकी बातें ही नहीं हो पायी है कहीं वह किसी और हिरोइन का नाम न प्रस्तावित कर दे। वह भी चाहती थी कि कुछ देर वह उसके साथ बातचीत करे। और हनू दा के चले जाने के बाद प्रोड्यूसर भी उससे बेतकल्लुफ़ हो गया था।
उसने बताया-''डायरेक्टरों की औक़ात ही क्या होती है? वे जिस कलाकार को रखने की राय देंगे डायरेक्टर ना नहीं कह पाता। उनकी तो प्रायः रीढ़ ही नहीं होती। ''
प्रोड्यूसर ने यह भी बताया था कि उसने मुंबई की तीन हिन्दी फिल्मों में पैसा लगाया है। अब वह बांग्ला फिल्मों में भी पैसा लगाना चाह रहा है। यह उसकी पहली बांग्ला फिल्म होगी। बांग्ला फिल्में कम पैसे में बन जाती हैं। और वे कम से कम अपना ख़र्च ज़रूर निकाल लेती हैं।
हिन्दी फिल्मों का नाम सुनकर रीतू की आंखों में एक चमक सी आ गयी थी। बातचीत के दौरान प्रोड्यूसर बीयर पीये जा रहा था। हल्का सा नशा चढ़ने के बाद उसने एकाएक रीतू को भी आफ़र किया था। रीतू इनकार नहीं कर सकी थी। बीयर पीने का उसका यह पहला अवसर था। मुंह कड़ुवाहट से भर गया था। प्रोड्यूसर ने उसके लिए जीन मंगवा दी थी। वह प्रोड्यूसर के साथ अधिक से अधिक समय गुज़ारने के फेर में पिये जा रही थी। बातचीत में प्रोड्यूसर अब उसके क़रीब आ चुका था और वह बेतकल्लुफी से कभी उसके कंधों और कभी उसकी जांघों पर थपकी देकर बात करने लगा था। रीतू उसके इरादे समझ चुकी थी। उसके मन में आया कि वह अब चल दे लेकिन उसके मन में भय समाया था कि बचकर जाना अपने सपनों के महल तो तोड़ कर जाना होगा।
उसके पैर वहीं जम गये थे। उसने अपने को प्रोड्यूसर के इरादों के हवाले करने का निर्णय लिया था।
वह इसके लिए मन ही मन तैयार हो चुकी थी कि वह चाहे जो कर ले। उसे उसका प्रतिवाद नहीं करना है। फिर वही जिस्मानी खेल उसके साथ खेला गया था, जिसमें वह केवल दर्शक भर थी। हालांकि वह खेल का हिस्सा भी थी।

ऐसा ही खेल जब उसे वितरक के साथ खेलना पड़ा। उसका मन एक तरह की वितृष्णा से भर उठा था। उसे लगा था कि क्या पता यह अंतहीन सिलसिला कब तक और कितना चलेगा। उसे लगा कि उसे लौट जाना चाहिए उस रास्ते से, जहां कदम- कदम पर वह समझौते करने पड़ें। एक गलीज खेल तक हर मर्द पहुंचना चाहता है। अब वह इशारे समझने लगी थी। किन्तु उसे यह भी ख़याल आता रहा कि वह अब लौट भी जाये तो उसने जो खोया है, वह क्या वापस मिल जायेगा? क्या अब वह पहले वाली रीतू रह गयी है?

दुनिया असफल लोगों के लिए नहीं है। उसे हरहाल में सफल होना होगा। सफलता ही उसका मूल्य है। सफलता ही उसकी मंज़िल। उसने अपने मन में इन घटनाओं को 'संघर्ष' का दर्ज़ा दिया और माना कि हर सफल व्यक्ति को संघर्ष करना ही पड़ता है। किसी को अधिक किसी को कम। वह अपने संघर्ष में उस शख़्स की भी हमबिस्तर हुई जिसे फ़िल्म में बतौर हीरो लिया जाना था।

यह सब उसने बहुत दिनों बाद मुझे बताया था। जब वह एक सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनी की ओर से आयोजित मिस एशिया सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जा रही थी। उसने यह भी कहा था कि यदि इस बार वह असफल रही तो फिर वह यह लाइन छोड़ देगी और गृहस्थी बसायेगी। उसने पहली बार मेरा हाथ पकड़ा था-''क्या तुम मेरे साथी बनोगे। हालांकि तुम्हारी दुनिया में अंजू है, मगर उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं एडजेस्ट कर लूंगी।''
मेरे ज़वाब की प्रतीक्षा किये बिना उसने कहा था। हालांकि उसकी बातों से यह स्पष्ट नहीं था कि उसकी गृहस्थी का स्वरूप कैसा हो सकता है। रीतू ने उसी दिन मुझे बताया था कि हनू दा ने उसके साथ खिलवाड़ किया है। उसके ज़िस्म से ही नहीं उसकी भावनाओं और उसकी आकांक्षाओं से। उसे अपने सपनों से खेले जाने का ज़्यादा दु:ख था। हनू दा ने उसे बेवकूफ़ बनाया था। उसके हाथ में कोई फ़िल्म नहीं थी। उसे कोई प्रोड्यूसर नहीं मिला था। ना ही उसने जिससे मिलवाया था वह वितरक ही था। यह कुछ ऐसे लोग थे जिन्हें नया ज़िस्म चाहिए था। वे हनू दा जैसे लोगों की मार्फ़त अपनी हवस की पूर्ति करते हैं। बदले में हनू को कुछ रकम मिल जाती है जिससे वह अपना गुज़ारा कर रहा था। उसकी फिल्में इतनी बुरी तरह पिटी थीं कि कोई उससे फ़िल्म तो या धारावाहिक भी डायरेक्ट करवाने को तैयार नहीं था। धीरे-धीरे उसे यह सब पता चला था। इस बीच वह बार-बार सपने देखती रही थी, जो पूरे नहीं होने थे।
इसी बीच मेरे नाटक का मंचन हुआ था जो फ्लाप रहा था। उस दिन के काफी अरसे बाद मेरी उससे मुलाकात हुई थी। इस बीच वह मेरे घर आयी थी लेकिन अंजू से मुलाकात हुई थी। मैं या तो घर पर नहीं था या अन्य शहरों में था।

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