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Monday, November 15, 2010

मंज़िल पर पहुंचकर रीतू

वह दिन आया जब अख़बारों की लीड मिस एशिया रीता तायवाला ही बनी थी। विभिन्न एजेंसियों से उसके बारे में काफी कुछ जारी किया था। उसमें उसने उन संघर्षो का ज़िक्र नहीं किया था। एक बनावटी कहानी थी उसकी ज़िन्दगी के बारे में। उसी के साथ एक विवाद और उठ खडा हुआ था जिसने अंजू व रीतू के सम्बंधों का खुलासा कर दिया था। अंजू ने एक अख़बार को इंटरव्यू दिया था कि उसने रीता तायवाला की न्यूड पेंटिंग बनायी है। रीता के दस न्यूड पेंटिंग्स की प्रदर्शनी वह जल्द ही देश के कुछ महत्वपूर्ण शहरों में करने जा रही है। पहली प्रदर्शनी के उद्घाटन के लिए वह रीता को निमंत्रित करने जा रही है।
यह इंटरव्यू चर्चा का केंद्र बन गया था। इस पर मीडिया ने रीता से तरह-तरह के सवाल पूछ डाले थे। वह इनकार करते नहीं थक रही थी। उसने साफ़ कहा था कि वह अंजू नामकी किसी चित्रकार से कभी मिली ही नहीं है। हां, यदि कोई कलाकार उसके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर कुछ रचे तो यह उसके लिए सम्मान की बात होगी। उसने अंजू के इंटरव्यू को उसके निजी फायदे के लिए को गुमराह करने वाला बताया था।

अंजू के लिए यह सदमे की स्थिति थी। वह बेहद अपसेट रही। प्रदर्शनी की योजना उसने रद्द कर दी थी। पहले उसकी योजना थी कि प्रत्येक पेंटिंग दो-दो लाख रुपये में बेचेगी। रीता के मुकर जाने से उसकी प्रतिष्ठा को धक्का लगा था। जल्द ही उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आयी। उसकी दस की दस न्यूड पेंटिंग्स एक ही ख़रीदार घर से आकर ले गया था। उसका कहना था कि उसने अख़बारों में इस बारे में पढ़ा है। वह उसकी बात पर यक़ीन करता है कि ये रीता की ही होंगी। वह अंजू का पुराना प्रशंसक रहा है। यह बात दीगर थी कि दसों का कुल दो लाख ही अंजू को उसने दिया था। अंजू मानसिक सदमे को भूलने के लिए यूं भी इनसे निजात पाना चाहती थी, सो उसने पेंटिंग्स से छुटकारा पा लिया था।

बहुत दिनों बाद उसे पता चला था इन पेंटिंग्स को खुद रीतू की मां ने ही एक आदमी भेज कर ख़रीदा था। उस समय उनका ख़याल था कि रीतू को अभी बहुत कुछ करना था। इस कदर एक्सपोज़र मुफ़्त में क्यों दिया जाये। इसका लाभ तो कलाकार को होगा नीतू को नहीं। मिस एशिया का पुरस्कार देने वालों का भी दबाव था कि वह पेंटिंग्स की सत्यता से इनकार कर दे। उसका उठना-बैठना किसके साथ होगा यह तक वे ही तय करते थे। शर्त के अनुसार वह न तो अपनी ओर से कोई ऐसा बयान ही दे सकती है, जो उसकी भावी ज़िन्दगी को लेकर हो। ना ही वह अपने परिवार और रुचियों आदि के बारे में स्वतंत्र कोई राय रख सकती है। उसे वही कहते रहना है, जो उसने अपने चुनाव के समय कहा था।
रीतू ने फिल्मों में काम करने की इच्छा ज़रूर सार्वजनिक की थी। यह कतई स्वीकार नहीं किया था कि पहले भी वह फ़िल्मों में काम करने का प्रयास कर चुकी है। उसने सिर्फ यह कहा था कि यदि किसी अच्छी भूमिका मिलेगी तो वे हिन्दी फिल्मों में अभिनय करना चाहेगी। उसने बताया था कि बचपन में कुछेक स्कूली नाटकों में अभिनय किया है। यह नहीं कहा कि उसने एक फ्लाप नाटक भी किया है।

फिर लगभग डेढ़ साल बाद उसकी फिल्म आयी थी। कोलकाता में मैंने देखा था। फिल्म ने दर्शकों को खासा निराश किया था। अभिनय का कच्चापन साफ झलक रहा था। हालांकि देह-प्रदर्शन उसने खुलकर किया था। उसके बाद एकाध फिल्म उसकी और आयी। वह चर्चा के बाहर हो चुकी थी। हनू दा ने भी उसे लेकर एक बांग्ला फिल्म बनायी थी, मगर वह भी नहीं चली। कई साल बाद वह कोलकाता मेरे अख़बार के कार्यालय आयी थी। मैं उन दिनों एक अख़बार का स्थानीय संपादक हो चुका था। उसके गारमेंट कपड़ों के शो-रूम का उद्घाटन होना था। उसी का निमंत्रण देने आयी थी। आधे घंटे की मुलाकात में उसने बताया कि वह जिस चमकती दुनिया में टिकने गयी थी वहां टिकना सबके बूते का नहीं है। वह भी टिक पाने में क़ामयाब नहीं हो सकी।

उसने तय किया है कि वह अपना बिजनेस संभालेगी। उसने यह भी बताया कि फ़िल्में फ्लाप होता देख उसने एक व्यवसाई से शादी कर ली थी, मगर पारिवारिक जीवन में कलह रहा। पति को हर रोज़ दूसरी लड़की चाहिए थी। उससे शादी उसने सामाजिक रुतबे के लिए की थी। तलाक लेने पर उसे कुछेक लाख रुपये मिले हैं, जिससे वह नयी जिन्दगी शुरू कर रही है। उसी दिन उसने अंजू की पेंटिंग्स वाली बात बतायी थी। उसने बताया कि उसे इस बात का बेहद अफसोस है कि उसके पति ने एक दिन नशे में उससे झगड़ा कर सारी पेंटिंग्स पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी थी। उसे भी यक़ीन था कि यह उसके वास्तविक चित्र हैं।

आपको बता दूं कि मैंने उस दिन उससे अपने नाटक की पाण्डुलिपि मांगी थी लेकिन उसे यह कतई याद नहीं था कि वह कहां हो सकती है या उसने किसी नाटक में काम भी किया है। वह पुराने दिनों को याद नहीं करना चाहती थी। उसने यह ज़रूर कहा था-''यार तुम अच्छे दोस्त होने के काबिल हो क्योंकि तुम इस्तेमाल होना जानते हो, जबकि दुनिया इस्तेमाल करना जानती है।''

जल्द ही रीतू को इस बात का एहसास हो गया था कि कारोबार उसके बूते का नहीं है। उसने फिर से ग्लैमर की दुनिया में कदम रखा था। अबकी वह गायिका बनी थी। उसने वह तमाम गुर सीख लिए थे जिसके बूते वह पॉप सिंगर बन गयी थी। उसने अच्छा डांस जानने वाले दर्जन भर लड़के-लड़कियों को अपनी टीम में रख लिया था। तेज शोर का संगीत और उस पर मस्ती से नाचते युवाओं के बीच उसका गीत मुश्किल से ही सुनाई पड़ता था। इससे किसी को क्या फ़र्क पड़ने वाला था। कम वस्त्रों और उत्तेजक इशारों से न उसे परहेज था और ना ही उसकी टीम की नौ अन्य बालाओं को। उसकी खूबी यह भी कि वह अपने साथ युवा श्रोताओं को सभागार में नाचने पर मज़बूर कर देती थी। उसके कार्यक्रम की शुरूआत सीटियों से होती जो बाद में पुलिस के लाठीजार्च में बदल जाती थी। इन्हीं वज़हों से वह चर्चित होने लगी थी। अख़बारों में स्कैंडल और उत्तेजक इंटरव्यू भी वह देती थी और कई बार अपने बयानों से मुकारती भी रहती थी।

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