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आकाशगंगा प्रकाशन,4760-61,23अंसारी रोड,दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 मूल्य-150 रुपये

Monday, November 15, 2010

फ्लैप पर

कला बाज़ारकी अन्तर्वस्तु दरअसल समाज की उस सच्चाई से बार-बार टकराती है जो अभी निर्माणाधीन है।भूमंडलीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज में परिवर्तन की दिशा ही नहीं बदली, बल्कि उसे तेज़तर भी किया है।समाज के बनते-टूटते मूल्यों पर लेखक की पैनी पकड़ है। एक नये समाज के जन्म का यह साक्षी है, जहांअन्तरविरोध उसकी स्वाभाविक वृत्ति सा प्रतीत होता है। समाजिक हलचलें व्यक्ति को बार-बार उद्वेलित करती हैं।यह उपन्यास अपने पाठक को वहां लाकर खड़ा कर देता है, जहां वह अपने अधिकतम स्वरूप में बलौस दिखायीदेता है। उपन्यास के पात्र नये समाज में अपनी भूमिका तलाश करने में लगे हैं। अपने ढंग से मूल्यों से टकराते हैंचूर होते हैं किन्तु हार नहीं मानते। अपने संदर्भ में अपने मूल्य निर्धारित करते हैं और नयी परिभाषा गढ़ते हैं। यहएक ऐसा बहुआयामी उपन्यास है जो अपने आकार में छोटा होते हुए भी एक विस्तृत फलक लिए हुए है। भारतीयसमाज में एक नयी बनावट का प्रारूप इसमें उपस्थित है। यह पाठक को वहां खड़ा कर देता है जहां इसके पात्र औरकथानक उसके मन में अपनी ज़गह बना लेते हैं और फिर प्रत्येक के लिए स्वतंत्र रूपाकार ग्रहण करते हैं। देश केविभाजन के बाद का पंजाब, माडलिंग, कला, साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया की आंतरिक पड़ताल इसकेकथानक और चरित्रों को विश्वसनीय और अर्थवान बनाया है। इसमें एक नयी भाषा, कहन का एक नया लहज़ामिलेगा। पठनीयता इसकी एक और खूबी है। यहां केवल एक खोयी हुई पाण्डुलिपि की खोज नहीं है बल्कि मनुष्यकी अपनी अर्थवत्ता की खोज है। और हां इस उपन्यास में वह नयी नारी भी आपको मिल जायेगी जिस पर भारतीयसमाज में इधर बहस छिड़ी है, जिसके लिए देह भी एक शक्ति है और देहेतर वज़ूद भी मूल्यवान।

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